Wednesday, July 8, 2009

काश

काश कि होते हम
तुम्हारे कानों की बालियाँ
गुनगुनाया करते सरगोशी में

काश कि होते हम
तुम्हारी आँखों का काज़ल
पलकों में रहते साथ साथ

काश कि होते हम
तुम्हारे होठों की लालिमां
अल्फाजों में रंग भरते सिन्दूरी

काश कि होते हम
तुम्हारे माले का मोती
धड़कने सूना करते साफ़ साफ़.

काश कि होते हम
तुम्हारे आस्तीन का कपडा
गुदगुदाया करते सहलाकर

काश कि होते हम
तुम्हारे पायल के घुंघुरू
चाल पे छेड़ते साज़ नई

काश कि होते हम
तुम्हारे कमरे का बल्ब
निहारा करते सोते वक़्त

काश कि होते हम
कुछ तो तुम्हारे

1 comment:

  1. jindagi me kabhi kabhi kash kash hi bankar rah jata hai ...........yahi jindgi ki bidambana hai.........

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