नगमें
कुछ नगमें चुनकर रक्खे थे,
तुम्हारी खातिर
आज देखा तो ज़ंग लग चुके थे.
ख़्वाब
आँखों में कीचड़ की तरह लगे थे
उँगलियों से साफ़ कर दिया
चंद अधूरे ख़्वाब थे.
तार्रुफ़
तार्रुफ़ करायेंगें कैसे
हमे देखते ही शर्मा जाते हैं
उनको जानने वाले लेकिन
जान जाते हैं कि हम उनके क्या लगते हैं.
कैमरा
यूँ कैद कर लेता हूँ चेहरों को, कैमरे से
सफ़ेद कागजों पर
ग़ज़लों सी शक्लें बनतीं हैं
आह
चाँद भी आहें भरता जो तुम नहीं आते नज़र
इस हुस्न के अकेले हम ही हिस्सेदार नहीं
मज़ाक
हुआ यूँ की एक दिन खुदा मिल गया
अपनी वजहे बर्बादी पूछा तो कहने लगा, हंस के
'मैं तो मज़ाक कर रहा था.'
उलझन
उनके प्यार जताने का तरीका भी अजीब है
इनकार में हंसते हैं
इकरार में मुस्कुराते हैं
राहे शौक़ १
राहे शौक़ दो तरफ जाता है
एक तरफ खाईं है
एक तरफ कुँआ.
शायर
सुनाकर बोर न कर दूं
तो मैं शायर नहीं
मैं बुरा नहीं, मैं इतना लिखता हूँ
ख्याल
जी में आया बाहों में भर लूं
जुल्फों में फेरकर उंगलियाँ, चूम लूं
मगर यारों,
ख्याल तो ख्याल ही है.
हम फिर आयेंगें नगमों की बारिश लेकर
थोडा सब्र रखो, हज़रत
१ प्रेम मार्ग
मंत्रमुग्धा / कविता भट्ट
2 years ago
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