Friday, July 24, 2009

पढ़ लीजिये, जाने क्या है?

चूमा था जिस तरह लहरों ने साहिल को
तुमने गिना?
मैंने भी नहीं.
ऐसी गिनतियाँ कहाँ याद रहती हैं.

लिखता गया लिखता गया
मालूम नहीं कि क्या लिखा
एक दिन किसी ने पूछ ही लिया
"मियाँ शायरी भी करते हो?"

तबियत तो ठीक थी, मिर्जा
बस ज़रा मुहब्बत हो गयी थी,
तकलीफों से.

शेरो शायरी नर्म हरी घासें हैं,
जो देखने में खुशनुमा तो लगती हैं
पर इनसे पेट नहीं भरता.

खामखा ज़ला बैठे सीना
इक बार तो सोच लिया होता,
क्या होता है अंजाम आशिकी का?

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