Sunday, May 14, 2023

अधूरी मुलाकात

बाद मुद्दत के मैं तुम्हारे शहर लौटा तुमसे मिलने,

सोचा था कुछ अपनी कहूँगा, कुछ तुम्हारी सुनूँगा,

वो सारी अनकही बातें जिन्हें अबतक छिपा रखी होंगी।


कबसे गले नहीं लगा, लगकर रोया नहीं तुमसे।

वही सवाल फिर करता कि कैसे हो?

इस उम्मीद में कि इस बार सच कहोगे।


मैं थोड़ा बदला हूँ पर तुम भी तो कितना बदले हो।

झुर्रियां आना शुरू हो गयीं हैं और बाल भी रंगने लगे हो।


शायद भूल गया था कि तुम नौकरीशुदा थे अब शादीशुदा भी हो।

वक्त कहाँ मिलता होगा तुम्हें यही समझाकर मैं लौट गया।

Sunday, September 5, 2021

अध्यापक

मैं अज्ञान के तिमिर में

भटक रही थी।

अर्थहीन, दिशाहिन 

मार्ग पर विचर रही थी। 


रिक्त सा आकाश

धरा भी विरक्त थी

मन था कोरा विशुद्ध

मैं भावशून्य, अव्यक्त थी। 


मेरे नींव के निर्माण में

उत्थान और निर्वाण में

अश्रु में, आनंद में

त्रास और परित्राण में 


तुम धूर समीक्षक 

और तुम्हीं मेरे समर्थक 

आत्मबोध हो गया

जीवन हुआ सार्थक। 


पिता की डांट तो पड़ी

पर मां का दुलार भी 

मित्र भी मिला गुरु में

स्वीकार हो आभार भी। 

Sunday, August 21, 2016

रिश्ते (भाग-२)

रिश्तों को भी खाद - पानी 
और ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है
फूलने- फलने के लिए, 
अन्यथा गुब्बारे के हवा की तरह 
धीरे- धीरे रिश्तों की भी हवा निकल जाती है

कुछ रिश्ते वृक्षों की तरह 
शनैः-शनैः सूखते हैं,
कुछ पौधों की तरह अचानक 
मृतप्राय हो जाते हैं 

रिश्ते दादी- माँ के घुटने के 
दर्द की तरह भी होते हैं 
जो पीड़ा देते हैं फिर भी 
उन्हें झेलने की 
उनके साथ जीने की आदत 
पड़ ही जाती है

अब वास्तव में ये रिश्ते मुझे 
आतंकित करते हैं 

सुना है जूठा खाने-खिलाने से 
प्रेम बढ़ता है
दादी माँ ने बचपन में 
मुझे बहुत जूठा खिलाया था
किन्तु मैं कह सकता हूँ 
कि प्यार बढ़ाने के लिए 
बस प्यार होना चाहिए। 
कृतिम प्रेम अधिक टिकाऊ नहीं होता। 

बालमन शब्दों के मायाजाल को 
नहीं समझता। 
कूटनीति और छिपे स्वार्थ 
नहीं समझता। 
परंतु वह 
सब कुछ समझ सकता है 
जो वयस्क मन समझना नहीं चाहते। 

मुझे आशा है 
विश्वास है 
इन सूखे पेड़ों पर, 
फिर नए पत्ते पनपेंगे 
फिर से कोई नयी शाखा निकलेगी 


[भतीजी "धान्या" को समर्पित]

Wednesday, November 27, 2013

भांजे 'वेद शुभमय' के लिए

जीवन-पथ पर रहो अग्रसर 
सुख में, दुःख में, प्रति क्षण। 

विजय सदा ही रहे तुम्हारी 
कोई भी हो रण। 

निर्भीक रहोगे, यत्न करोगे 
ले लो तुम यह प्रण।  

जग में फैले यश तुम्हारा
भाग्य लिखो, करो विश्व- भ्रमण। 

हरण करो बाधाएं सबकी 
प्रेम जगत का करो ग्रहण।

Friday, August 3, 2012

तराना


खुदा के वास्ते, खुदा का वास्ता मत दो
बहुत होता है दर्द अब मुस्कुराने में.
मोहब्बत कर तो लें हम, तौबा नहीं इश्क से
दिखा दो एक भी पर्दानशीं बेगैरत जमाने में.
दिया जब दिल पे फिर से, उसी ग़म ने यूँ दस्तक
रुक ना पाए, चले आये हम मयखाने में.
वो कहते हैं हमें जीना नहीं आया
हो गयी खर्च जीस्त देखो आजमाने में.
अजी अब क्या गिला शिकवा करेगें हम
जो भी कहना था, कह दिया इस तराने में.

Monday, February 6, 2012

उन दोस्तों के नाम

ये जो दर्द है, इस दर्द की, दवा नहीं
वो जो लग जाए मुझे, ऐसी कोई, दुआ नहीं.

मेरी हर किसी से है दोस्ती
कितने तो मेरे यार हैं
जिन पर बड़ा गुरूर है
अजी जान भी निसार है.
मगर ये अफ़सोस कि, उन्हें भी यूँ, लगा नहीं.

ये तो हुस्न वाले हैं अरे
इन्हें क्या कोई जिये मरे
बहुत बदगुमान है ये कौम
जो जमीं पे है कब ठहरे.
इतनी सी बात समझ लें ये, ऐसा कभी, हुआ नहीं.

कुछ लोग मुझ जैसे भी हैं
जिन्हें खुद की कुछ खबर नहीं
जिन्हें ग़म ही रास आ गया
ख़ुशी की कुछ कदर नहीं.
किसी रोते को हँसा दिया, कुछ और तो, किया नहीं.

कुछ ज़िन्दगी के नाम

ज़िन्दगी तुझपे कई एहसान हैं मेरे
देख मैं जिंदा हूँ सौ ग़म खाके भी.
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जिस तरह मौत अमादा थी गले लगाने को
काश कि तुझे मेरी जुस्तुजू भी होती.
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या खुदा तूने दिया क्या इक ग़म के सिवा
चल तुझपे इक ज़िन्दगी उधार रही.