Monday, July 6, 2009

कुछ मेरे अपने

हुस्न होगा वो ज़माने के लिए
अपने लिए तो यारों
मौत का सामान था.

मुज़र्दी में कटी तमाम ज़िन्दगी
उम्मीद बाकी थी मौला
मय्यत में लाएगा रिश्ता कोई.

क़यामत के दिन जब पूछेगा खुदा
मरने का सबब
हसीनों पे इल्जाम देंगें.

फैसले से मुहब्बत करना होता
तो तुमसे ही क्यूँ?
इस ज़माने में हसीं और भी हैं.

सुना है लवों को लवों से टकराओ
तो आग निकलती है
अब यही आजमा कर देखना है.

तुम आये ज़िन्दगी में तो ख्याल आया
हम तनहा ही अच्छे थे, यारों.

ख्वाहाँ थे हम उसकी आँखों के जाम के
देखो ज़रा खुदाई
पानी भी नसीब नहीं हुआ.

3 comments:

  1. लगता है गहरी चोट खाये हुये है .............यह नज़्म भी यही कुछ बयान कर रही है ..........शुभकामनाये

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  2. Maut ke saman ko gale lagakar
    tune to maut ko pahle hi mahsoos kar liya
    Karna chahiye tha ada apko,shukriya us hasina ka
    par apne to unko bewafa nam de diya
    shikayat kya kare koi khuda se hasinon ki
    usne to inhe banaar apna kam asan kar diya...................HOW IS YOUR URDU SO GOOD?I MEAN U R NOT A MU..AS UR NAME IS D.TIWARI

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  3. Well thanx a lot for all your comments. Hmmm. . . Urdu does not belong to any particular community. It was born in my country.

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