Sunday, July 5, 2009

शर्म तुमको मगर नहीं आती

कोई उम्मीद बर नहीं आती
कोई सूरत नज़र नहीं आती

मौत का एक दिन मुअय्यन है
नींद क्यूँ रात भर नहीं आती

है कुछ बात कि चुप हूँ
वरना क्या बात कर नहीं आती

हम वहाँ हैं जहां से हमको भी
कुछ हमारी खबर नहीं आती

काबा किस मुंह जाओगे 'गालिब'
शर्म तुमको मगर नहीं आती.

- गालिब

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