कोई उम्मीद बर नहीं आती
कोई सूरत नज़र नहीं आती
मौत का एक दिन मुअय्यन है
नींद क्यूँ रात भर नहीं आती
है कुछ बात कि चुप हूँ
वरना क्या बात कर नहीं आती
हम वहाँ हैं जहां से हमको भी
कुछ हमारी खबर नहीं आती
काबा किस मुंह जाओगे 'गालिब'
शर्म तुमको मगर नहीं आती.
- गालिब
ज्योतिकृष्ण वर्मा
8 hours ago

No comments:
Post a Comment