Friday, August 3, 2012

तराना


खुदा के वास्ते, खुदा का वास्ता मत दो
बहुत होता है दर्द अब मुस्कुराने में.
मोहब्बत कर तो लें हम, तौबा नहीं इश्क से
दिखा दो एक भी पर्दानशीं बेगैरत जमाने में.
दिया जब दिल पे फिर से, उसी ग़म ने यूँ दस्तक
रुक ना पाए, चले आये हम मयखाने में.
वो कहते हैं हमें जीना नहीं आया
हो गयी खर्च जीस्त देखो आजमाने में.
अजी अब क्या गिला शिकवा करेगें हम
जो भी कहना था, कह दिया इस तराने में.

Monday, February 6, 2012

उन दोस्तों के नाम

ये जो दर्द है, इस दर्द की, दवा नहीं
वो जो लग जाए मुझे, ऐसी कोई, दुआ नहीं.

मेरी हर किसी से है दोस्ती
कितने तो मेरे यार हैं
जिन पर बड़ा गुरूर है
अजी जान भी निसार है.
मगर ये अफ़सोस कि, उन्हें भी यूँ, लगा नहीं.

ये तो हुस्न वाले हैं अरे
इन्हें क्या कोई जिये मरे
बहुत बदगुमान है ये कौम
जो जमीं पे है कब ठहरे.
इतनी सी बात समझ लें ये, ऐसा कभी, हुआ नहीं.

कुछ लोग मुझ जैसे भी हैं
जिन्हें खुद की कुछ खबर नहीं
जिन्हें ग़म ही रास आ गया
ख़ुशी की कुछ कदर नहीं.
किसी रोते को हँसा दिया, कुछ और तो, किया नहीं.

कुछ ज़िन्दगी के नाम

ज़िन्दगी तुझपे कई एहसान हैं मेरे
देख मैं जिंदा हूँ सौ ग़म खाके भी.
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जिस तरह मौत अमादा थी गले लगाने को
काश कि तुझे मेरी जुस्तुजू भी होती.
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या खुदा तूने दिया क्या इक ग़म के सिवा
चल तुझपे इक ज़िन्दगी उधार रही.

Sunday, February 5, 2012

आदतें

अपनी आदत से मजबूर हैं
दुनिया में सभी
किसी को दिल्लगी किसी को दिल
तुडवाने की बीमारी.

कोई ख़्वाब दिखाता कोई देखता है
कोई राज बताता है कोई दबाता है
कोई घर बनाता कोई रहता है
कोई सुनता है कोई गुनगुनाता है

कोई लूटता है कोई लुट जाता है
कोई छोड़ दे कोई अपनाता है
कोई रोये ही कोई मुस्कुराता है
कोई चीखे कोई फुसफुसाता है

कोई बेशर्म है कोई शरमाता है
करे सजदा कोई गलियाता है
कोई यादों में जिये कोई भूल जाता है

अपनी आदत से मजबूर हैं
दुनिया में सभी
किसी को मौत मिल जाए किसी को
ना आये जीना ही.

जब वी मेट

बात मुद्दत के मुस्कुराए थे वो
जैसे बिछड़ा हुआ मिला हो कोई.

लफ्ज़ दो प्यार से कहा भी नहीं
लब पे जैसे रखा गिला हो कोई.
होठों पे कुछ तो हरकत सी हुई
ज्यूँ गुलाब इक हिला हो कोई.

खुश तो वो यूँ हुए कि पूछो मत
झूमकर ज्यूँ घटा बरसा हो कोई.
हमने आँखों से इतनी पी ली
गोया सदियों से प्यासा हो कोई.

कर गए दूर से (ही) रुखसत वो हमे
न मिलेंगें फिर करके ये वादा.
छूने की रह गयी हसरत दिल में
क्या था जो माँगा (था) इत्ता भी ज्यादा.

Thursday, February 2, 2012

मेरे आगे

इक अलग अंदाज़ में मिलता है जमाना
होता है रोज ये तमाशा मेरे आगे.
अब यकीं किस बात पे करें बोलो
खुलता है झूठ का पुलिंदा मेरे आगे.
वो जो बड़े मासूम बने फिरते हैं
जगता है उनमें दरिंदा मेरे आगे.
मेरे अरमानों के परवाज़ भी हैं
गिरता है फलक से परिंदा मेरे आगे.
ख्वाबों पे ज़िन्दगी बसर नहीं होती
मरता है मजबूर (इक) बंदा मेरे आगे.
बोलियाँ चाहे जिसकी भी लगा लो
होता है गैरत का धंधा मेरे आगे.
शौक़ से इश्क फरमाओ लेकिन
उठता है इश्क का जनाजा मेरे आगे.
क्या गिला जाके दैरो- हरम में करुँ
है खुदा पहले ही शर्मिंदा मेरे आगे.

Wednesday, January 25, 2012

तजुर्बा- २

सुना है दर्द में दर्द का एहसास नहीं होता
बुरा हो वक़्त तो कोई हमदर्द पास नहीं होता.
यूँ तो किसी भी बात पे रोना आ सकता है मगर
अश्क निकलते नहीं ग़म जब बेइन्तेहाँ होता है.
तुम्हें मिल जायेगें हर मोड़ पे नए नए दोस्त
उसकी कमी तो रह जायेगी वो जो जुदा होता है.
क्यूँ गिला शिकवा किया नहीं कभी हमसे
चुप रहना, कुछ न कहना ज्यादा बुरा होता है.
उसने पूछा कि हम तनहा क्यूँ हैं अब तक
बेशकीमती चीज़ों का सौदा नहीं होता है.

उदास शाम

तुम चले गए हो जबसे
लगता है सब बुझा बुझा सा है.
कुछ नज़र आता ही नहीं
गोया हरसूं धुंआ धुंआ सा है.
वक़्त गुजरा नहीं कई जमाने से
क्यूँ लगे वक़्त रुका रुका सा है.
भर गया जख्म जो भी तुमने दिया था
उठता क्यूँ दर्द फिर दबा दबा सा है.
अब तो तुमसे गिला भी करता नहीं
क्यूँ शर्म से तेरा सर झुका झुका सा है.
यूँ लगा था जैसे तुम्हें भुला दूंगा
जुस्तुजू फिर कोई जगा जगा सा है.

चले आओ पिया

याद बड़ी जोर की आ रही है पिया
दिल दुखाने ही तुम चले आओ.
वो दिया जख्म भी भर चला है
कोई नया ग़म देने चले आओ.
लग गयी है सिसकने की ये जो आदत
तुम रुलाने ही सही चले आओ.
तुम्हें नफ़रत की नज़र से भी देखें
तुम सताने ही लेकिन चले आओ.
क़दमों में फूल बिछाने का था वादा
कांटें ही राह में बोने चले आओ.
हो जीने का कुछ तो सबब अपना भी
इस हालत पे तरस खाने चले आओ.
हम ना बोलेंगें एक लफ्ज़ भी कभी
कि सीलेंगें ये लब चले आओ.
यूँ तो तुमसे बड़ी शिकायत है हमे
ना करेंगें गिला तुमसे चले आओ.

तेरे बगैर

तुम ना आओगे तो शाम गुजरेगी कैसे
यूँ तनहाइयों में महफ़िल जमेगी कैसे.
तुम जो होते हो तो करार मिलता है मुझे
दिल की बेताबियाँ वरना थमेगीं कैसे.
तुम पे आके ही ख़त्म होती है हर जुस्तुजू
आरजू दिल की तुम बिन जगेगी कैसे.
तेरी आँखों में समाई है मेरी दुनिया
ये निगाहें किसी और को देखेगीं कैसे.
धड़कने गिनगिन के रात बिताई मैंने
इतने मसरूफ हो समझोगे कैसे.
क़त्ल कर जाता है रात का सन्नाटा
चैन से सोने वाले जानोगे कैसे.

Wednesday, January 4, 2012

तलाश

जिससे बातें की तन्हाईयों में अक्सर
और रोया जिसके सीने से लगकर
जिसकी आँखों में देखी जन्नत के नज़ारे
कट गया बुरा वक़्त भी जिसके सहारे
जिसके लरजते होठों को छुआ है कई बार
जिसको महसूस कर छाया मस्ती का खुमार
जिसकी आवाज़ आज भी खनखनाती है कानों में
मिला तो नहीं पर रहती है आस पास इन्ही मकानों में.

किस हमसफ़र की तलाश में
सदियाँ गुजर गयी
जो ना ख्वाब्गाहों में मिला
ना ख्यालों में.