Friday, October 14, 2011

मंजिलें मिल जाती हैं.

हो डगर जितना भी कठिन
मंजिलें मिल जाती हैं
गर इरादा पक्का हो तो
मंजिलें मिल जाती हैं.

रास्ते बन जाते हैं
पर्वतों को तोड़कर
इक महासागर बनता है
बूँद बूँद जोड़कर.
हौसला मत छोड़ना बस
मंजिलें मिल जाती हैं.

दूसरों की बाद में
पहले दिल की सुन ले तू
दिल से थोड़ी गुफ्तगू कर
हो जा खुद से रू-ब-रू.
कुछ नहीं बस, खुद पे यकीं हो
मंजिलें मिल जाती हैं.

इक अमेरिकन था एडिसन
अपनी धुन में रहता था
रच गया इतिहास जो
दुनिया से वो कहता था.
आग हो सीने में तेरे गर
मंजिलें मिल जाती हैं.

Sunday, October 9, 2011

बच्चों के लिए स्वच्छता पर एक कविता

सुबह सवेरे जब भी उठो
ब्रश करना कभी ना भूलो
फिर करो चेहरे के सफाई
बड़ा जरूरी है ये सब भाई.

है खाना जैसे रोज जरूरी
उतना ही जरूरी है रोज नहाना
गर्मी सर्दी कोई हो मौसम
करो ना कोई कभी बहाना.

परहेज़ करो बाहर की चीज़ों से
खाओ धोकर फल- तरकारी
अगर ना मानो मेरी बातें
होगी तुमको निश्चय बीमारी.

डरेगी तुमसे हर बीमारी
खाओ पीओ बस ठीक तरह से
कुट्टी कर लो गंदी चीज़ों से
और ठाठ करो तुम रहो मज़े से.

खेलोगे कूदोगे पढोगे
तभी जो तुम स्वस्थ रहोगे
आस पास तुम रखो सफाई
इसी में है हम सबकी भलाई.

Wednesday, October 5, 2011

तनहा शाम

वो तो आये नहीं इस बार
तनहा फिर कटेगी शाम.

बेकरारी बढ़ी फिर से
परेशां इस कदर है दिल
संभाले कैसे खुद को हम
ना वो आये नज़र कबसे.
ना आया ही कोई पैगाम
तनहा फिर कटेगी शाम.

उनकी बातों में जादू है
नशा आँखों में है यारों
झूम कर चलें ऐसे
मचल जाएँ दिल के अरमाँ.
मज़ा देता नहीं अब जाम
तनहा फिर कटेगी शाम.

डूबकर यादों में उनकी
गुजर जाए ये ज़िन्दगी
ना कोई और ख्वाहिश है
सिवा चाहें उन्हें यूँ ही.
लव पे आये उन्ही का नाम
तनहा फिर कटेगी शाम.