अपनी वजहे बर्बादी सुनिए तो मज़े की है
ज़िन्दगी से यूँ खेले, जैसे दूसरे की है.
- जावेद अख्तर
क्या जानूं लोग कहते हैं किसको सुरूर- ए- कल्ब
आया नहीं ये लफ्ज़ तो, हिंदी जुबान के बीच.
बेखुदी ले गयी कहाँ हमको
देर से इंतज़ार है अपना.
सब्ज़ होती ही नहीं ये सरज़मीं
तुख्मे- ख्वाहिश दिल में तू बोता क्या है?
- मीर
मंत्रमुग्धा / कविता भट्ट
2 years ago
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