न मुझे रंज है किसी की बेवफाई का
न मैं नाकाम-ए- मुहब्बत हूँ.
न मुझे शिकवा है दोस्तों से
न गिला है खुदा से.
न तकदीर का मारा हूँ
न हारा हुआ जुआरी हूँ.
न तो मैं ज़िन्दगी से परेशां हूँ
न मौत से डरता हूँ.
मुझे दिक् है अपने आप से
ऐसे अरमानों से जो चाह कर भी
मेरे नहीं हो सकते
मंत्रमुग्धा / कविता भट्ट
2 years ago
Jo chaho tum milega wo,
ReplyDeletePhir chahne me aisi kanjusi kyun dikhate ho,
kya dar hai kisi cheeze ke gum ho jane ka,
Agar nahi,to kyun nhi khud ko gumana azmate ho