Saturday, February 27, 2010

मैं और मेरा फ्रसट्रेशन

मैं और मेरा फ्रसट्रेशन
अक्सर ये बातें करते हैं
कि ऐसा होता तो कैसा होता
वैसा होता तो कैसा होता
एक मस्त रेसिंग कार होती
मेरी खूबसूरत सी गर्ल फ्रेन्ड होती
जिसे लोंग ड्राइव पर दूर कहीं ले जाता
मैं और मेरा फ्रसट्रेशन
अक्सर ऐसी बातें करते हैं

किसी कम्पनी का मालिक होता
या अच्छी नौकरी होती
प्यारी सी पतिव्रता पत्नी होती और
मेरे तीन चार प्यारे प्यारे चूजे
बडा सा बंगला होता
दस बारह नौकर होते
मेरा बोस भी मेरे यहाँ नौकरी करता
और फोकट की दो- चार गालियाँ खाता
बाप दादा की छोडी इतनी जाय्दाद होती
कि मैं दोनो हाथों से लूटाता
मैं और मेरा फ्रसट्रेशन
अक्सर ये बातें करते हैं

न किसी का डर होता
न किसी चीज से खौफ़ होती
जब भी गुस्सा आता तो लगे हाथ
दो दो जमा देता
लिफ्ट न देने वाले रिक्शेवाले को
तंग करने वाले पोलिसवाले को
घूस मागनेवाले सरकारी बाबू को
मैं पिछले जन्म में जरूर किसी
सूबे का राजा रहा हूँगा
जिसकी आत्मा ने अभी तक
आपनी आद्तें नहीं बदली.
अब अफसोस तो यह है कि
राजे रजवारों का न जमाना रहा
न मेरे वालिद ने इतनी
जायदाद बटोरी
कि मैं नौकरी के मायाजाल से
मोक्ष पा सकूँ
कहने को बहुत कुछ है दिल में
लेकिन किससे कहूँ
आखिर कब् तक यूं ही खामोश रहूँ
और सहूँ
कब् तक दिल के अरमानों को हवा देता रहूँ
सुलगाता रहूँ?
जी तो चाहता है कि चीख चीख कर
चिल्ला चिल्ला कर लोगों को बता दूँ
कि हाँ मैं फ्रसट्रेटेड हूँ
फ्रसट्रेटेड.