Wednesday, July 8, 2009

नयी परिभाषा

इंट्रोस्पेक्शन

कोई ख्याल नहीं गुजरता
कुछ करने का आहंग फ़ौत हुआ
कंधे से चूरे उड़ रहे थे तसव्वुर के

बहुत दिनों बाद ठीक से नहाया था.


बोम्ब ब्लास्ट


शोर बहुत हो रहा था, रेल के डब्बों में
किसी को बस गुस्सा आ गया
और पटाखे फोड़ दिया

खामुशी में शक्लें भी पहचानी नहीं जातीं.

भूख

हमारे वालिद अनाज उगाते हैं
हमने तसव्वुर के पेड़ लगायें हैं
कोई खरीदार नहीं मिलता

लगता है आज भी भूखों सोना पड़ेगा.

दंगे

माथा पीट रहा था खुदा
उसके दो बच्चों ने
एक दूसरे को मार डाला था

उसे भी इल्म हुआ उसके दो नाम भी हैं.

बलात्कार

गया वो जमाना जब लोग
दिल चुराया करते थे

अब तो सरहतन डाके पड़ते हैं.

भ्रष्टाचार

पुल ही कमजोर था, गिरता क्यूँ नहीं
उसने कहा था

थोडा तुम खाओ थोडा हम खाएं.

गरीबी

मैं गरीब क्यूँ हूँ क्या बताऊँ
खुदा ने पूछकर तो
नेमते नहीं दी थी

गन्दगी

मच्छरों के घरों में
आदमी रहते थे
कुछ मलेरिया से मरे
कुछ तोय्फायेड से.

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