कोई भी हो मौसम हम
आंसू ही पीते हैं
अपने ज़ख्मी दिल का
लहू भी पीते हैं
उनके जैसे हो जाते
ऐ काश कि हम भी यारों
गम इतना तो ना सताता
गर खा सकते गम भी यारों
कि भूल जाएँ गम सारे
इसीलिए तो पीते हैं. कोई भी हो मौसम हम
वो भी था एक ज़माना
याद करते नहीं थकते थे
एक पल के लिए ओझल हों
तो रूठ जाया करते थे
अब ऐसे भूला बैठे हैं
जाने कैसे जीते हैं. कोई भी हो मौसम हम
कैसे कैसे वादे वो
हमसे किया करते थे
अपने हाथों में हमारे
हाथ लिया करते थे
अब मिटती नहीं वो लकीरें
चाहे जितना धुलते हैं. कोई भी हो मौसम हम
गर दिल ये हमारा इतना
मज़बूत हुआ करता तो
हम ऐसे टूट ना जाते
सब टूट के बिखरता जो
जीने की ख्वाहिश बाकी है
ज़ख्म तभी सीते हैं. कोई भी हो मौसम हम
मंत्रमुग्धा / कविता भट्ट
1 year ago
ऐसे भूला बैठे हैं तो, जाने कैसे जीते होगा?
ReplyDeleteकोई भी हो मौसम, वो आंसू ही पीते होगा?
think like that...but yes any body can feel your pain...