Tuesday, June 22, 2010

ज़िंदगी

अपने आप से लड़ते लड़ते
हार गया मैं
दुनिया को फतह करने के
इरादे से चला था
दिल में जोश और उमंगों की
कोई कमी नहीं थी
सोचता था
जमाने को अपने क़दमों में डाल कर ही चैन लूँगा
बादलों को रौंदकर
आसमान को मुठ्ठी में बाँध लूँगा
जाने क्या क्या और बहुत कुछ
सोचता था लेकिन
आखिर, मैं हार गया
अपने आप से.

कभी भी निगेटिवली
नहीं सोचता था
बड़ा ही आप्टिमिस्टिक था मैं
कायरों के ऊपर मुझे तरस आता था
लोगों का मैं अक्सर
हौसला अफजाई करता था
कि मुश्किलों से लड़ना सीखो
हार से कोई भी वास्ता मत रखो
बस यही सोचो कि
तुम्हे जीतना है
हर कीमत पर
हर हाल में
लेकिन मैं ही हार गया.

सबसे पहले दमे से
जान पहचान हुई
इस दमे ने तो दम ही निकाल दिया
कई बार मरते मरते भी
लगा मैं बच गया
यूँ लगता था जैसे
किसी ने साँसे खींचकर
खूंटी पर लटका दिया हो
छटपटाते छटपटाते
अपने हाँफते दिल को
संभालने की कई बार कोशिश की
यूँ लगता था जैसे दिल फिसलकर
दूर चला जा रहा हो
बिना सांस के
और धडकते हुए थके दिल के
साथ कई रातें काटी है मैं
कैसे? यह मैं ही जानता हूँ.

दिल और फेफड़े की
बेवफाई से अभी उबर भी ना पाया था
कि आँखों ने दगा दे दिया
तबसे कांच की नकली
जुडवा आँखों से काम चला रहा हूँ.

खांसी से अपनी बचपन की यारी है
दमे की वजह से
गले और नाक भी रुसवा कर गए
और यह सब
एलर्जी नाम के किसी
भयानक दैत्य की करतूत है
अभी कुछ रोज पहले
मुझे स्किन एलर्जी भी हो गयी
डाक्टर दोस्त ऐसा बताते हैं
क्योंकि नहाने के बाद बने
लाल लाल रंग के डिजायनों से
यही साबित होता है.
पीठ के दर्द ने वैसे ही जीना दूभर कर रक्खा है
जाने और कौन सी बीमारियाँ
बची हैं.

मैंने कभी भी किसी का
बुरा नहीं किया
ना तो बुरा चाहा
दारू, सिगरेट, मॉस मछली को
हाथ तक नहीं लगाया
पराई स्त्री को छूआ तक नहीं
फिर क्यूँ हुआ
यह सब मेरे साथ?

एक एक करके
सारे सपने ध्वस्त हो गए
मेरी आँखों के सामने
एक जिंदादिल इंसान
आज एक चलती फिरती
लाश बन गया है
अब देखता रहता हूँ
चुपचाप
उन अरमानों को
धुंआ होते हुए
टुकुर टुकुर ताकती
नन्हीं नन्हीं आँखों से
असहाय सा.

ज़िन्दगी बहुत खूबसूरत है
यह पहले भी जानता था
अब समझता हूँ.

1 comment:

  1. ज़िन्दगी बहुत खूबसूरत है
    यह पहले भी जानता था
    अब समझता हूँ

    -सही है..हमेशा ध्यान रखें इस बात का...अच्छी रचना!

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