Monday, June 21, 2010

मुसलमान- भाग दो

सुनीता कुकरेजा
बड़े आराम से
स्लीपर कोच में बैठी रहीं
आलू चिप्स कुरकुराया
कुल्हड़ में चाय सुरका
बिस्किट भी कुतरे
फिर दो घूँट पानी पीकर
मुंह पोंछा और
बड़े इत्मीनान से
पालथी मार कर बैठ गयीं
पर्स से रुद्राक्ष की माला निकालकर
बड़ी तेजी से कुछ
बुदबुदाने लगीं.

बीच बीच में
ध्यान बँट जाता तो
बुदबुदाना बंद सा हो जाता.
करीब साल बाद
बेटी के वहाँ जा रहीं थीं
नाती का ख्याल आते ही
मुरझाये से झुर्रीदार चेहरे पे
रौनक आ गयी
उसकी बहुत सी बातें याद हो आने से
हंसी छूट गयी
बीच बीच में
उनकी नज़र
ऊपर नीचे, दायें बाएँ बैठे
पसेंजरों पर जाती रही
खूबसूरत औरतों को
तिरछी नज़र से मुयायना करती
भौहें सिकुड़ गयीं
किसी का मेक अप ठीक नहीं
तो किसी को बोलने का शऊर नहीं
लेकिन उनकी खूबसूरती देख जलन तो जरूर हुई.
उनके बच्चों को प्यार करने को
जी भी ललचाया
वहीँ गंदी देहाती औरतों को देख घिन सी आई
उनके रोते गंदे बच्चों को देखकर
मितली सी हुई
बस चलता तो जरूर
कोच बदल लेतीं
असहाय होकर उन्होंने
मुंह ही फेर लिया.
फेरते ही कुकरेजा साहब की फ़िक्र
होने लगी.
कैसे रह पायेंगे
दो हफ्ते यूँ अकेले?

उनको लगा किसी ने टोक दिया
इसलिए माला जपने में गति सी आई
मगर जल्द ही
टूट भी गयी
उन्हें चिंता सताने लगी
बेटी को गिफ्ट की सारी
पसंद आएगी कि नहीं
ऐसी अनेक गंभीर समस्याओं से
जूझ ही रहीं थीं कि
दो यात्री चढ़े.

ट्रेन भी खुल गई
जैसे इन्ही का
इन्तेजार कर रही थी.
इन्हें देखते ही
उनके हाव भाव बदलने लगे.
हाय रब्बा!!!
इनको यहीं बैठना था
शक्ल तो देखो इनकी
देखते ही डर लगता है
लम्बी लम्बी दाढ़ी
मूछें सफाचट
घुटने तक पायजामे
सर पे अफगानी टोपी
बदन से अजीब सी बदबू.

ये यहाँ क्या कर रहे हैं?
जाएँ पाकिस्तान
रहेंगें हिंदुस्तान में
नमक खाएं यहाँ का
और गायेंगें वहां की
बड़ी ही एहसानफरामोश कौम है
सब के सब आतंकवादी हैं
गद्दार, देश के दुश्मन
इंसानियत के दुश्मन
मैं तो कहूं
मुसलमान और सांप मिलें
तो पहले मुसलमान को मारो
सांप कांटना भूल भी जाये
लेकिन. . .

इन्ही दहशतगर्दों ने मेरे इकलौते बेटे
रविंदर की जान ली थी
भगवान इन्हें कभी माफ नहीं करेंगें.

अचानक
हिचकी आनी शुरू हो गयी
जल्द ही उन्होंने जो कुछ खाया था
बाहर कर दिया.
सामने बैठे रफीक ने
पानी का बोतल दिया
पीठ सहलाया
और कहा-
मांजी, आप लेट जाईये
आराम मिलेगा
वह लेट गयीं
वाकई आराम मिला!!!
फिर अचानक
एक नया विचार कौंधा-
सारे मुसलमान
एक जैसे नहीं होते
कुछ अच्छे भी होते हैं

1 comment:

  1. ऐसे ही सोच सुधरे तो तस्वीर बदले.

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