Sunday, June 6, 2010

ख़त

बात इतनी सी नहीं
कि तुमने ख़त लिखा

ख़त लिखने के पहले
कुछ सोचा होगा
बहुत कुछ महसूस किया होगा
तुमने याद किया होगा
पुरानी बातें
हमारी मुलाकातें
होंठों को चाटा होगा
दबाकर काटा होगा
हंसी भी छूटी होगी
पलकें मूँद कर
आँखों को मींचा होगा
साँसों को छोड़ा होगा
कुछ परेशानी में
कुछ बेकरारी में
इधर उधर
टहला होगा
सोफे पर बैठ कर भी
बेचैनी हुई होगी.

फिर ख़त लिखने का ख्याल आया होगा
लेकिन समझ में नहीं आया होगा
कि शुरू कहाँ से करें.
हाथ कांपें होंगें
दिल धड़का होगा
पसीने टपके होंगें
लिखकर काटा होगा
फिर से लिखा होगा
सोच सोचकर
कई दफा तुमने
मुस्कुराया भी होगा

मैं सब कुछ महसूस कर सकता हूँ
इस ख़त को पढ़कर

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