अबकी आऊंगा तुमसे मिलने तो
गिले शिकवे भी दूर कर दूंगा
इसके पहले कि जम जाए तेरा गुस्सा
तेरे गुस्से के कई फांक कर दूंगा
लेपकर नमक और मिर्ची
रखना सिरहाने मेरे
माज लेना अपने आरजूओं को
ताकि होश रहें ठिकाने मेरे
तैर कर डुबकियां लगा लेना कई
जब भी पिघलेंगें जज्बात मेरे
इसके पहले कि ठण्ड लग जाये तुम्हे
अपनी गर्म बाहों में भर लूँगा
बातों की चाशनी लब से चखना
छानकर भींगें गेसुओं से
पाग लेना अपनी नज़रें
मेरी नज़रों की मिस्री मैं
सिंक जाएँ तुम्हारी साँसे भी
भाप की उडती सर्द आहों से
भूल पाऊं ना वो लम्हे सो
गर्म ताज़ा ही उन्हें रख लूँगा.
अबकी आऊंगा तुमसे मिलने तो
गिले शिकवे भी दूर कर दूंगा
मंत्रमुग्धा / कविता भट्ट
1 year ago
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