Sunday, June 6, 2010

अबकी

अबकी आऊंगा तुमसे मिलने तो
गिले शिकवे भी दूर कर दूंगा
इसके पहले कि जम जाए तेरा गुस्सा
तेरे गुस्से के कई फांक कर दूंगा

लेपकर नमक और मिर्ची
रखना सिरहाने मेरे
माज लेना अपने आरजूओं को
ताकि होश रहें ठिकाने मेरे
तैर कर डुबकियां लगा लेना कई
जब भी पिघलेंगें जज्बात मेरे
इसके पहले कि ठण्ड लग जाये तुम्हे
अपनी गर्म बाहों में भर लूँगा

बातों की चाशनी लब से चखना
छानकर भींगें गेसुओं से
पाग लेना अपनी नज़रें
मेरी नज़रों की मिस्री मैं
सिंक जाएँ तुम्हारी साँसे भी
भाप की उडती सर्द आहों से
भूल पाऊं ना वो लम्हे सो
गर्म ताज़ा ही उन्हें रख लूँगा.

अबकी आऊंगा तुमसे मिलने तो
गिले शिकवे भी दूर कर दूंगा

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