दिल के संदूक को
खंगाला
वो ग़म हाथ लगा
जिस पर तुम्हारे काजल का
काला तिल चस्पा हुआ था
जिस पर तुम्हारे
चूमते वक़्त की
पडी थूक की बूंदे
अभी तक मौजूद थी
उनसे वैसी ही खुशबू आ रही थी जैसे
कभी तुम्हारे बदन से आया करती थी-
भीनी भीनी गुलाब जल की तरह
और हाँ
उसमें तुम्हारे बाल का
एक टूटा हुआ सिरा भी
चिपका पडा था.
बात पुरानी हो चुकी थी
मिट्टी की कई परतें पड़ चुकीं थीं
उसे पोंछा
चमकाया
तो उसमें मेरा चेहरा दिखने लगा
जैसे तुम मेरी पुतलियों में
अपना चेहरा तलाशती रहती
मुझे हंसी आई
गौर से सूना तो
तुम्हारी हंसी की खनखनाहट
साफ़ सुनाई दी
छुआ तो
फिसल गयीं मेरी उंगलियाँ
जैसे
तुम्हारी गोरी बाहों को
छूने से फिसला करतीं थी.
गिरते गिरते बचा
होश आया तो याद आया
सड़कों पर काई जमी पडी है
आजकल
इस शहर में
बरसात बहुत होने लगी है.
मंत्रमुग्धा / कविता भट्ट
2 years ago
babu ji dheere chalna ...barsat huee hai bade kichad hai is rah me !!!!!!!!!!
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