उलझी हुई सी ज़िन्दगी में
पत्थर गिरा एक चाँद सा
फिर सुहानी हो गयीं शामें.
गिर पडा इक बूँद सा
दरिया मेरी आँख से
और एक शहर डूब गया.
आसमान को जोतकर
फसल तो उगा ली
पर जमीं बंजर हो गयी.
खिडकियों से झांककर
देखा ख्याल ने
तो मुर्दे सो रहे थे.
मैंने जो लिखा है
वो अजीब सा नहीं है.
मगर जो अजीब सा है
वो अजीब लगता नहीं है.
मसलन इस देश में शराब मिलता है
पानी नहीं
गधे समझदार हैं
इंसान से
बन्दूक सस्ता है
रोटी से
मजहब बड़ा है
मुहब्बत से.
मंत्रमुग्धा / कविता भट्ट
2 years ago
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