शायद किसी रोज
दिल की धड़कन रुक जायेगी या
किसी बम धमाके में फट जाऊं
या किसी हादसे में ही
मुझे इस दुनिया से विदा लेना पड़े
मेरे मरने पर
कितने लोग रोयेंगे
कहना मुश्किल है
शायद मेरी माँ, मेरी बहन
इन्हें रोने का बहुत अनुभव है
पिताजी और भाइयों को कभी
रोते नहीं देखा
इसलिए नहीं कह सकता.
कुछ करीबी दोस्तों को
थोडा सदमा लगे शायद
अरे मर गया?
बड़ी जल्दी टिकट कटा लिया
था तो भला चंगा?
कोई ख़ास फर्क नहीं पडेगा
फिर रोज की तरह
सभी आफिस जायेंगे
परिवार के साथ बैठ के
टी वी देखेंगे
और गाहे ब गाहे
कभी मेरा जिक्र आया तो
कहेंगे
"भला आदमी था, बेचारा"
मेरी अंतिम क्रिया के वक़्त
कोई नहीं आयेगा
और मैं यह दावे के साथ
कह सकता हूँ
वही पुराना
छुट्टी ना मिलने का बहाना
लेकिन उन्हें बहाने बनाने की
जरूरत नहीं पड़ेगी
क्यूंकि उनको इनविटेशन कार्ड तो
मिलेगा नहीं
वैसे भी
मैं लोगों की शादियों में
मुश्किल से जा पाता हूँ
उनको बदला लेने का
इससे अच्छा अवसर और कहाँ मिलेगा?
हिन्दू रिवाजों के अनुसार
मुझे जलाया जायेगा
शादी तो की नहीं
अवैध संतान भी नहीं
फिर भाइयों में
जो सबसे ज्यादा भावुक होगा
मुझे अग्नि देगा.
चन्दन की लकड़ी
सुना है बहुत महंगी आती है
जाहिर है
मितव्यता का पालन करते हुए
किसी शवदाह में
सस्ते में निपटा देना ठीक रहेगा
वैसे भी मैंने
अपने माँ बाप के
लाखों रूपये
फ़ोकट में उड़ा दिए हैं
वो भी बिना किसी उचित रिटर्न के.
सवाल उठता है
मेरी राख कहाँ फेंकी जायेगी?
सच कहूं तो कभी विदेश ना जाने का
बड़ा ही मलाल रहा है
और वहाँ नदियाँ, पोखर
बड़े साफ़ सुथरे होते हैं
खैर, छोडिये. . .
गंगा जमुना तो इतनी गन्दी हो चुकी हैं कि
वहाँ मेरी आत्मा को शान्ति नहीं मिल सकेगी.
मैं तो चाहूँगा
मेरी राख
मेरे गाँव के खेतों में छिड़क दिए जाएँ
उन्हीं खेतों का अन्न खाकर
बड़ा जो हुआ हूँ
उसी में मिलकर
मेरी आत्मा तृप्त हो जायेगी.
एक कुशल एकाउंटटेंट होने के कारण
अगर मैं
पाप और पुन्य के खातों का
मिलान करुँ तो
पुन्य की बाकी (बैलेंस) आएगी
और इस हिसाब से नियमानुसार
मैं स्वर्ग का भागीदार
होउंगा
चूंकि किस्मत के मामलों में
बड़ा ही फिसड्डी रहा हूँ-
कभी कोई पुरस्कार
क्रिकेट मैच या फिल्म का
पास तक जीत नहीं सका
इसलिए स्वर्ग का पास मिलेगा
मुझे शक है
और अगर मिले भी तो
क्या पता वहाँ भी
"कंडीशंस अप्प्लाई" हो.
मैं आस्तिक तो हूँ
पर धार्मिक नहीं
उसके बाकी भक्तों की भांति
ना कभी मंदिर जाता हूँ
ना मिठाइयों की रिश्वत देता हूँ
ना गुणगान करके
मस्का लगाने की आदत सीखी
ना उपवास कर पाता हूँ
ना घंटी हिलाता हूँ
ना कोई पोथी पढी कभी
यानी देखा जाय तो
धार्मिक मामलों में भी
सबसे फिसड्डी
अब मरने के बाद आदतें
कौन सी जाने वाली हैं?
अगर भगवान भी
बहुत चापलूस पसंद हुए
तो मेरी वाट लगना तय
क्या पता
अगर मूड ठीक ना हुआ तो
रिटर्न टिकट भी थमा सकते हैं.