Wednesday, November 9, 2011

तजुर्बा

हुस्न होगा वो जमाने के लिए
मेरे लिए तो यारों, मौत का सामान था.

दुश्वारियां रहीं जिस्त में हजारों तरह की
कमबख्त मरना ही बस, आसान था.

क्या क्या ना ग़म मिले वो भी बेहिसाब
क्या कहें मुझपे खुदा, इतना मेहरबान था.

दिल के मामलों में मैं बेवकूफ ही रहा
आज भी यही दिक् है, मैं तब भी परेशान था.

रंज है इल्म हो गया अहले जहां को
और मेरा दिल ही, मुझसे अनजान था.

किया दोस्तों पे ऐतबार मैंने खुद से ज्यादा
क्या खूब दोस्त मिले, हर दोस्त बेईमान था.

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