आप आये ज़िन्दगी में खुदा बनके
दर्द आया जुबाँ पे दुआ बनके.
हमको तन्हाईयाँ जीने नहीं देंती
दिल का जो जख्म है सीने नहीं देंती
जख्म गहरा गया है बढ़ते बढ़ते.
अपनी हालत भी सुधर जायेगी
ग़म की आंधी भी गुजर जायेगी
सह गया सोचके ग़म हँसते हँसते.
अब तो आलम है कि रो नहीं पाते
रातभर लेट के भी सो नहीं पाते
उम्र हो गयी यूँ ही जगते जगते.
आपसे मिलके उम्मीदें हैं जगी
फिर से लौटी है होठों पे हंसी
आँख भर गयी कैसे कहते कहते.
खुशियाँ मिलती हैं तो डर लगता है
इस ख्याल से भी दिल उदास रहता है
रह ना जाए किस्मत बनते बनते.
हमको अपना बनाकर देखो
अपनी पलकों में बसाकर देखो
फिर से जी जायेंगें मरते मरते.
मंत्रमुग्धा / कविता भट्ट
2 years ago
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