आपको देखकर देखता रह गया
रातभर ख़्वाब में, सोचता रह गया.
इश्क में कुछ तो होश यारों रहता नहीं
खुद से लापता हुआ, लापता रह गया.
मैं समझने लगा आप भी समझ गए
थे लब सिले आँखों से, बोलता रह गया.
इक झलक से ही दिल ये बहल जाता था
मैं इधर से उधर, नापता रह गया.
हाथ जब भी उठे माँगा आपको ही रब से
मांगने की थी लत, मांगता रह गया.
आप रुसवा ना कर दें ये डर भी तो था
दिल में ही चाहता था, चाहता रह गया.
दोस्तों में मजाक बनके मशहूर था
बेहूदा शायद था, बेहूदा रह गया.
तय किया दिल की बात आज बोल दूंगा मैं
उसकी महफ़िल में जाके, ताकता रह गया.
है गुजारिश मेरी आशिकों की कौम से
जाके कह दो दीवाना, आपका मर गया.
मंत्रमुग्धा / कविता भट्ट
1 year ago
No comments:
Post a Comment