Friday, November 25, 2011

इल्तेजा

तुमको देखा तो लगा ऐसे
कोई बिछड़ा हुआ मिला मुझको.

ज़िन्दगी से बहुत शिकायत थी
अब कोई भी नहीं गिला मुझको.

जाके मयखाने शराब पीता था
बैठ यूँ आँखों से पिला मुझको.

इक जमाने से मैं तो सोया नहीं
अपनी जुल्फों में तू सुला मुझको.

जिंदा इक लाश बन चुका हूँ मैं
होंठों से छूके जिला मुझको.

लोगों ने ढायें हैं सितम इतने
कम से कम तू तो न रुला मुझको.

घूरती हैं निगाहें सबकी
उनकी नज़रों से बचा मुझको.

इसके पहले कि फनां हो जाऊं
गर्म बाहों में तू छुपा मुझको.

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