अब तो आदत सी हो गयी है, चुप रहने की
हिम्मत नहीं होती है, कुछ कहने की.
लोग मतलब निकाल लेते हैं कई बातों की
मैंने जाना कि तहें होती हैं इन बातों की.
कुछ ना कहिये, चुप रहिये, देखते रहिये
अभी उतरेगी रंगत सबके चेहरों की.
गैर क्या अपने साए भी साथ छोड़ देते हैं
फ़िज़ूल बातें हैं, ना कीजै, जज्बातों की.
हुए हैं पाँव लहू- लहान इस कदर लेकिन
ख़त्म होती नहीं फुर्सत-ऐ- गुनाह, रास्तों की.
आज रोया हूँ मैं, छुपके, जी भर के बहुत
कि समझ आयी अहमियत मिरे अश्कों की.
मंत्रमुग्धा / कविता भट्ट
1 year ago
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