क्या बताऊँ मैं कैसे जहर पी गया
था तो कड़वा बहुत फिर भी मैं पी गया.
उसने छोड़ा नहीं था कोई भी कसर
मरते मरते भला कैसे मैं जी गया.
कुछ लिया कुछ दिया जाता है इश्क में
रातभर क्या मिला जोड़ता रह गया.
उसने चाही थी बस दो घड़ी की दोस्ती
और मैं था कि जो था वो सब दे गया.
भर गया हर जखम उससे पाए हुए
देखिये दाग दिल पे मगर रह गया.
मेरे सीने से लगकर कभी रोया था
वो काजल लगा शर्ट हाथ लग गया.
यह वही हैं कभी जो मेरे होते थे
मगर आज सिर्फ अजनबी रह गया.
मुद्दतों बाद फिर सामना जब हुआ
इक पुराना सा घाव कहीं जग गया.
मंत्रमुग्धा / कविता भट्ट
1 year ago
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