हैं जेहन में आज भी
वो स्कूल बस
चाटवाले की ठेली, ग्वाले की डेरी
बनिए की दूकान
वो बड़ा सा नीम का पेड़
मंदिर की घंटी, रामधुन
फेरीवाले, नुक्कड़
वो गली, गली का मोड़
उसकी छत का मुंडेर
पत्थर का टीला, चबूतरा
बहते सीवर, संकरी सडकें
इस अजनबी मुल्क में
अपना शहर ढूँढता हूँ.
वो घंटों इन्तजार करना
उसके लौटने का
इक झलक देखने का
छुप छुप के उसे निहारते रहना
लूटना आँखों की मस्ती
बहकना इधर उधर खोये खोये
तडपना खनकती उस आवाज़ को सुनने के लिए
आँखों में आँखें डाले घंटों बतियाना
धडकनों का बढ़ना, साँसों का तेज़ होना
आज के बाजारू मुहब्बत में
वही असर ढूँढता हूँ.
वो सुकूँ भरी ज़िन्दगी
पक्षियों का चहचहाना
मुर्गे की बाग़, कोयक की कूक
घने बरगद की सुहानी छाँव
सर्दी में अलाव सेंकना
दोस्तों का घर
मौज मस्ती, वो बेफिक्री
किस्से कहानियाँ, कहकहे
चैन की नींद
अलसायी शाम, महकती सुबह
दिन- दोपहर ढूँढता हूँ.
तुलसी का पेड़
होली, रंगोली, मेंहदी और गुलाल
माँ के हाथ का बेसन के लड्डू
गाजर का हलवा, पूरी, पुआ और खीर
रिश्तों की मिठास, गर्माहट स्पर्श की
माँ- बाबा, दादा- दादी,
भैया- दीदी, नाना- नानी
चाचा- चाची और फूफी
मामा- मामी और मौसियाँ
फोन और फेसबुक के दौर में
रहा कसर ढूँढता हूँ.
कुछ छूट गए थे प्रश्न
उनके उत्तर ढूँढता हूँ.
कितना कुछ बदल गया
यही अंतर ढूँढता हूँ.
मंत्रमुग्धा / कविता भट्ट
2 years ago
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