Thursday, November 10, 2011

इश्क और फेसबुक

जख्मी दिल और छलनी कलेजा
बेगैरत आशिकों का अंजाम यही है.
आखिर लोगों ने कर लिया इश्क से तौबा
ये हुस्न यूँ ही बदनाम नहीं है.
कैस अब ना होंगे पैदा किसी जमाने में
क्यूंकि लैला का भी नामोनिशान नहीं है.
लगती हैं बोलियाँ इंसानों की आजकल
जज्बातों से खेलना यहाँ आम नहीं है.
अक्ल के नाम पे है बस मांस का इक लोथड़ा
"फेस बुकिंग". और कोई काम नहीं है.

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