उलझी हुई सी ज़िन्दगी में
पत्थर गिरा एक चाँद सा
फिर सुहानी हो गयीं शामें
गिर पड़ा एक बूंद सा
दरिया मेरे आँख से
और एक शहर डूब गया
आसमान को जोतकर
फसल तो उगा ली
पर जमीन बंज़र हो गयी.
खिड़कियों से झांक कर
देखा ख्याल ने
तो मुर्दे सो रहे थे
मैंने जो लिखा है
वो अजीब सा नहीं है
मगर जो अजीब है
वो अजीब सा लगता नहीं है.
मसलन, इस देश में
शराब मिलता है पानी नहीं
गधे समझदार हैं इंसान से
बन्दूक सस्ता है रोटी से
मज़हब बड़ा है मुहब्बत से.
ज्योतिकृष्ण वर्मा
8 hours ago

No comments:
Post a Comment