Monday, April 6, 2009

एक कविता ख़ास तुम्हारे लिए

जब हवा महकने लगे
कोई नदी उनफने लगे
घटा भी बरसने लगे
समझो तुम गुनगुनायी हो.

कहीं कोयल कूकने लगे
पंछी वन में चहकने लगे
दरो दीवार चमकने लगे
समझो तुम मुस्कुरायी हो.

रुत में रंग गहरा हो जाये
सावन और सुनहरा हो जाये
सख्त चांदनी का पहरा हो जाये
समझो तुम घबरायी हो.

राही जब रास्ता भूले
मस्त पवन झूला झूले
खेतों में सरसों फूले
समझो एक ली अंगड़ाई हो.

खुदा ने बेहद सोचा होगा
भरपूर वक़्त लगाया होगा
कुदरत की हर चीज से
चुनकर तुम्हें बनाया होगा
बेशक
सबमें तुम समायी हो.

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