बातों की कद्र नहीं
जज्बातों की कीमत नहीं
हर चीज़ पैसों में तुलती है.
दिलों में कहीं कहीं
इंसानियत मिलती है.
इस नयी पीढ़ी को
न आस्मां है, न जमीन
फिर भी गुरूर है
जाने किस बात से?
यारों, इन्हें बताओ
यह वक़्त कभी
किसी का सगा नहीं हुआ.
मंत्रमुग्धा / कविता भट्ट
2 years ago
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