पीपल के पेड़ की छाँव,
बरगद के झूले,
वो नशीला स्वाद गन्ने के रस का.
अमरुद का कसैलापन,
वो स्कूल से भाग कर
फिल्म देखने का आनंद.
धूप में दिनभर की मस्ती,
चोरी के कच्चे आम
और हरे चने का नाश्ता,
चोरी पकडे जाने का डर
बाबूजी की मार, फिर माँ की दुलार.
बारिश में भीगना,
मिट्टी की सोंधी- सोंधी खुशबू,
गरम- गरम गुड का चटकीला स्वाद
पत्थरों से इमली तोड़कर खाना
और उस जीत का एहसास.
वो अल्हड़पन, वो आज़ादी.
आज के शहर की पैदावार
क्या समझेगी और क्या जानेगी.
मंत्रमुग्धा / कविता भट्ट
2 years ago
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