बात ही बात में
बात बढ़ गयी
अब याद भी नहीं कि शुरू कहाँ हुई थी
इतनी तरह की बातें एक साथ
पहले कभी सोचा ही नहीं था
आधी- अधूरी बात
चटपटी बात
मामूली सी बात
भूली बिसरी बात
चिकनी चुपड़ी बात
अजीब बात
बेमतलब की बात
सुनी सुनाई बात
तुम्हारी बात
मेरी बात
उसकी बात
हर तरह की बात
हज़म होने वाली बात
नमक बुरके हुए
जैम लगे हुए
मक्खन चुपड़े हुए
कुछ गीले गीले
कुछ सूखे सूखे
कुछ बस फीके से
नरम मुलायम भी
खुरदुरे भी
आसूओं में सने
खून से लतपथ
चूने की तरह
कोयले की तरह
इस उस की तरह
हर उस की तरह
लाजबाब बात
बेहिसाब बात
बात ही बात
ज्योतिकृष्ण वर्मा
8 hours ago

No comments:
Post a Comment