Friday, January 22, 2010

अंजलि की सहेली

सुन अंजलि, तेरी गली मुझको मिली
रूठी हुई सी ज़िन्दगी, जो करने लगी
कुछ दिल्लगी जो बन गयी दिल की लगी
हैरान था, परेशान था, इस बात से अनजान था
वो मनचली जैसे कली, दूधो धुली
इतनी जली१, इतनी भली
गय्यूर२ था, मगरूर था, मैं नशे में चूर था
मजबूर था, कुछ दूर था
उसने कहा आ पास आ
यह जीस्त३ है बस चार दिन
जीना भी क्या है यार बिन
दीदार कर, इकरार कर
जी चाहे जितना प्यार कर
वो छोडके फिर क्या गयी
दुनिया मेरी वीरां हुई
अब आस है, यही प्यास है
लब पे मेरे इल्तमास४ है
वो फिर मिले तेरी गली
दिल में मची है खलबली
सुन अंजलि, ओह अंजलि

१ उज्जवल, २ आन रखने वाला, ३ ज़िन्दगी, ४ प्रार्थना

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