मेरी तरह मेरा खुदा भी
बड़ा सनकी किस्म का है
मेरी बात कभी सुनता ही नहीं
कितनी बार कहा,
दरख्वास्त की
गुजारिश की कि कुछ करिश्मा कर
जेब नोटों से भर दे.
बहुत सारे अरमानों के बीज
जो तुने बोये थे
अब दश्त१ बन चुके हैं
मगर वह हमेशा
लैत-व- लअल२ कर जाता है
अब मुझे क्या मालूम
उसके लिए क्या लाबूद३ है
क्या नहीं.
कब तोड़ेगा सुकूत४ अपनी
कब सुनेगा मेरी सदायें?
१ जंगल, २ टाल मटोल, ३ जरूरी, ४ चुप्पी
मंत्रमुग्धा / कविता भट्ट
1 year ago
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