Friday, January 8, 2010

हूक- दो

अजीब हालत हैं
गुस्सा तो आता हैं मगर
किया क्या जाय?
चीखे, चील्लाये या
किसी को मार दिया जाय गोळी?
कितना बर्दाश्त करे कोई
युं ही खामोश रहकर
कब तब तक घुटे कोई?

किसको दोष दिया जाय
कौन गुनेह्गार हैं
तक़्दीर या तक़्दीर लिखने वाला
या खुद मैं या कोई नही
कोस कोस कर थक गया
रो रोकर हार गया
और कितनी ह्दे होती हैं बता तो सही
गम खाने की?

खो रहा हू भीड में
किसी तिनके की तरह
हवाये उडा ले जाती हैं
पानी बहा ले जाती हैं
कोई भी कुचल जाता हैं
देखो फिर,
किसका पैर पड गया अभी?

No comments:

Post a Comment