कहीं कोई गुर्सनागी से मर रहा है
कोई तिश्नगी से तड़प रहा है
कहीं किसी की इस्मत लुट गयी है
किसी का जहां तबाह हुआ है
कहीं मातम का आलम है
कोई हैरान परेशां है
कोई दर्द से बिलबिला रहा है
कोई बईफात ग़मों से लाईल्म हो चुका है.
गाँव के गाँव डूब गए हैं कहीं
कहीं फसलों की तरह नस्लें
मुरझा गयीं हैं
गली गली से
कत्ले आम के ख़बरों की
बू आ रही है
हर तरफ लूटमार मची है
ज़िन्दगी महफूज़ किधर है?
मुझे सुबह सुबह काम पर जाना है
कंप्यूटर के स्क्रीन पर
आँखें फोड़कर घर लौटना है
रास्ते से सब्जियां खरीदनी हैं
टेलीफोन और बिजली के बिल जमा करने हैं
देर से आने पर बीवी के ताने सुनने हैं
जब खुदा को यह सब
दिखाई नहीं देता
सुनाई नहीं देता
तो मुझे क्या?
आज पंद्रह मिनट देर से पहुंचा था
ज़रा अलार्म जल्दी लगाना.
मंत्रमुग्धा / कविता भट्ट
2 years ago
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