सुलगे अरमानो से
छलके पैमानो से
दिल के तूफानो से
तंग आ गया हू जिंदगी.
क्या बताउं कैसी उल्झने हैं
दिन रात कैसे मरता हू
उडने की हैं आरजू पर
पैरो में लगी हैं बेडिया
जैसे किसी ने मेरी नसो में डाल दिया हो
खौलता पानी.
सुझता नही कि क्या करू
पड गये हैं छाले उस जगह
जिस जगह रखे थे ख्वाब चुनकर
जिस वजह से मैं जी रहा था
युं लग रहा हैं गोया बेकार हो रही हैं
जवानी.
हो गया हू तन्हा आज कितना
तनहाई भी हैं कुछ खफा सी
रोज रूबरू होती हैं मुझसे
एक नये रूप में ये जिंदगी
खतम होते नही पन्ने इसके
कितनी लंबी हो गयी कहानी.
ज्योतिकृष्ण वर्मा
8 hours ago

No comments:
Post a Comment