Friday, January 22, 2010

चेहरे

बचपन से देखता आया हूँ
अगर ठीक से गिना होता तो
जरूर कहता कि कितने लाख
चेहरे देखे हैं मैंने
कई चेहरे याद भी हैं
कई लेकिन भूल भी गए.

चेहरों को देखने के बाद
कुछ चेहरे ऐसे लगते हैं कि
उनको बार- बार देखने की तमन्ना होती है
तो किसी को देख
सिर्फ घिन सी आती है
लेकिन अक्सर मौकों पर
कुछ नहीं होता
ना घिन आती है ना ही प्यार
कई चेहरे ऐसे देखे जो देखने में बहुत प्यारे लगे
लेकिन करीब से जब जाना तो
पता चला
कुछ लोग चेहरों पे कई चहरे लगाये फिरते हैं.
और अपनी सहूलियत से
चेहरे बदलते फिरते हैं

लोग कहते हैं चेहरा मन का आईना होता है
यानी मन की बात आपके
चेहरे पर पढ़ी जा सकती है
इस हिसाब से तो
मैं अनपढ़ ही रहा.

देखा
रंग उतरते चेहरों के
देखा
रंग निखरते चेहरों के
देखा
रंग बदलते चेहरों के
देखा
रंगों को भी बेवफा होते हुए.

चेहरे
मकान मालिकों के
चेहरे
किरायेदारों के
चेहरे
झुलसाती धूप में सड़कों पर
नंग धडंग घूमते, भीख मांगते बच्चों के
चेहरे
एयरकंडीशंड कारों में चलने वालों के
चेहरे
अपने ही घर से बेघर हुए
लाचार बुजुर्गों के

चेहरे
जायदाद के लिए लड़ते सगे भाईयों के
चेहरे
विदा होती बेटियों के
चेहरे
धर्म के ठेकेदारों के
चेहरे
देश के गद्दारों के
चेहरे
खून के प्यासे दरिन्दों के
चेहरे
सरहदों पर शहीद होते
फौजी सिपाहियों के
चेहरे
दोगले चरित्र के नेताओं के
चेहरे
जोंक की तरह खून चूसते लालाओं के
चेहरे
बलात्कारियों के
चेहरे
सहमी हुई अबलाओं के
चेहरे
झूठ के दारोगाओं के
चेहरे
मैले कुचैले महीनों से बिना नहाये
मजदूरों के
चेहरे
अपाहिजों के
चेहरे
मरे हुए लोगों के.

कभी सोचा है आपने
इन चेहरों के बारे में
कि किसने बनाये इतने सारे
रंग बिरंगे भिन्न भिन्न
अजीबो गरीब से चेहरे?

कुछ तो बात है इन चेहरों में.

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