Friday, January 22, 2010

अंजलि की सहेली

सुन अंजलि, तेरी गली मुझको मिली
रूठी हुई सी ज़िन्दगी, जो करने लगी
कुछ दिल्लगी जो बन गयी दिल की लगी
हैरान था, परेशान था, इस बात से अनजान था
वो मनचली जैसे कली, दूधो धुली
इतनी जली१, इतनी भली
गय्यूर२ था, मगरूर था, मैं नशे में चूर था
मजबूर था, कुछ दूर था
उसने कहा आ पास आ
यह जीस्त३ है बस चार दिन
जीना भी क्या है यार बिन
दीदार कर, इकरार कर
जी चाहे जितना प्यार कर
वो छोडके फिर क्या गयी
दुनिया मेरी वीरां हुई
अब आस है, यही प्यास है
लब पे मेरे इल्तमास४ है
वो फिर मिले तेरी गली
दिल में मची है खलबली
सुन अंजलि, ओह अंजलि

१ उज्जवल, २ आन रखने वाला, ३ ज़िन्दगी, ४ प्रार्थना

लोग

ये वही लोग थे
सीधे मुंह बात नहीं करते थे
जब भी उनसे मिलता
आदत से मजबूर
मैं धधाकर मिलता और वे
जैसे नाक पर मक्खी बैठ गयी हो
बिन पूछे,
अजीब सा मुंह बना लेते.

दरवाजे खोलने से पहले
उनके चेहरे पर
हंसी की जो हरियाली होती
पतझड़ की तरह
झड जाती अगर
दरवाजे पर मैं होता.

मैं उन्हें अपना दोस्त समझता था
और वे मुझे एक
गैर जरूरतमंद चीज़
किताबों से जैसे
कवर फट जाते हों
वैसे तो मैं खाने पीने का
कोई शौक़ ही नहीं रखता
इसका यह मतलब तो नहीं कि
कोई चाय- पानी के लिए भी ना पूछे?

हमेशा की तरह
उनके हाल- चाल
मैं लेता
ख़त लिखकर
फोन करके
अक्सर जवाब नहीं मिलते
उनके बर्थडे पर विश करना
मुझे ही याद रहता
ऐसा भी नहीं कि मुझे बुरा ना लगा हो
मगर
कभी कोई शिकायत नहीं की.

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आजकल
दिन में दो चार फोन आ ही जाते हैं
कुछ खुद मिलने चले आते हैं
तब भी
जब मैं उनसे नहीं मिलता
बात नहीं करता
मगर उन्हें बुरा नहीं लगता
वो फिर भी दावत का निमंत्रण देना
नहीं भूलते

मेरा पी ए उन्हें कभी
अपोयमेंट नहीं देता
बाहर गेट पर वाचमैन उन्हें
अन्दर घुसने नहीं देता
मुझे मालूम है कि
वो उसे बताते हैं
कि तुम्हारे साहब हमारे बहुत अच्छे दोस्त हैं
हम सब साथ ही पढ़े बढे हैं.
मुझे यह भी पता है
कि वे सब घर जाकर
दिलखोलकर
मुझे गालियाँ देते हैं
मैं नहीं सुनता
फिर भी.

यही वो लोग थे.

बात

बात ही बात में
बात बढ़ गयी
अब याद भी नहीं कि शुरू कहाँ हुई थी
इतनी तरह की बातें एक साथ
पहले कभी सोचा ही नहीं था

आधी- अधूरी बात
चटपटी बात
मामूली सी बात
भूली बिसरी बात
चिकनी चुपड़ी बात
अजीब बात
बेमतलब की बात
सुनी सुनाई बात
तुम्हारी बात
मेरी बात
उसकी बात
हर तरह की बात

हज़म होने वाली बात
नमक बुरके हुए
जैम लगे हुए
मक्खन चुपड़े हुए
कुछ गीले गीले
कुछ सूखे सूखे
कुछ बस फीके से

नरम मुलायम भी
खुरदुरे भी
आसूओं में सने
खून से लतपथ
चूने की तरह
कोयले की तरह
इस उस की तरह
हर उस की तरह
लाजबाब बात
बेहिसाब बात
बात ही बात

चेहरे

बचपन से देखता आया हूँ
अगर ठीक से गिना होता तो
जरूर कहता कि कितने लाख
चेहरे देखे हैं मैंने
कई चेहरे याद भी हैं
कई लेकिन भूल भी गए.

चेहरों को देखने के बाद
कुछ चेहरे ऐसे लगते हैं कि
उनको बार- बार देखने की तमन्ना होती है
तो किसी को देख
सिर्फ घिन सी आती है
लेकिन अक्सर मौकों पर
कुछ नहीं होता
ना घिन आती है ना ही प्यार
कई चेहरे ऐसे देखे जो देखने में बहुत प्यारे लगे
लेकिन करीब से जब जाना तो
पता चला
कुछ लोग चेहरों पे कई चहरे लगाये फिरते हैं.
और अपनी सहूलियत से
चेहरे बदलते फिरते हैं

लोग कहते हैं चेहरा मन का आईना होता है
यानी मन की बात आपके
चेहरे पर पढ़ी जा सकती है
इस हिसाब से तो
मैं अनपढ़ ही रहा.

देखा
रंग उतरते चेहरों के
देखा
रंग निखरते चेहरों के
देखा
रंग बदलते चेहरों के
देखा
रंगों को भी बेवफा होते हुए.

चेहरे
मकान मालिकों के
चेहरे
किरायेदारों के
चेहरे
झुलसाती धूप में सड़कों पर
नंग धडंग घूमते, भीख मांगते बच्चों के
चेहरे
एयरकंडीशंड कारों में चलने वालों के
चेहरे
अपने ही घर से बेघर हुए
लाचार बुजुर्गों के

चेहरे
जायदाद के लिए लड़ते सगे भाईयों के
चेहरे
विदा होती बेटियों के
चेहरे
धर्म के ठेकेदारों के
चेहरे
देश के गद्दारों के
चेहरे
खून के प्यासे दरिन्दों के
चेहरे
सरहदों पर शहीद होते
फौजी सिपाहियों के
चेहरे
दोगले चरित्र के नेताओं के
चेहरे
जोंक की तरह खून चूसते लालाओं के
चेहरे
बलात्कारियों के
चेहरे
सहमी हुई अबलाओं के
चेहरे
झूठ के दारोगाओं के
चेहरे
मैले कुचैले महीनों से बिना नहाये
मजदूरों के
चेहरे
अपाहिजों के
चेहरे
मरे हुए लोगों के.

कभी सोचा है आपने
इन चेहरों के बारे में
कि किसने बनाये इतने सारे
रंग बिरंगे भिन्न भिन्न
अजीबो गरीब से चेहरे?

कुछ तो बात है इन चेहरों में.

Friday, January 8, 2010

हूक- दो

अजीब हालत हैं
गुस्सा तो आता हैं मगर
किया क्या जाय?
चीखे, चील्लाये या
किसी को मार दिया जाय गोळी?
कितना बर्दाश्त करे कोई
युं ही खामोश रहकर
कब तब तक घुटे कोई?

किसको दोष दिया जाय
कौन गुनेह्गार हैं
तक़्दीर या तक़्दीर लिखने वाला
या खुद मैं या कोई नही
कोस कोस कर थक गया
रो रोकर हार गया
और कितनी ह्दे होती हैं बता तो सही
गम खाने की?

खो रहा हू भीड में
किसी तिनके की तरह
हवाये उडा ले जाती हैं
पानी बहा ले जाती हैं
कोई भी कुचल जाता हैं
देखो फिर,
किसका पैर पड गया अभी?

हूक- एक

सुलगे अरमानो से
छलके पैमानो से
दिल के तूफानो से
तंग आ गया हू जिंदगी.

क्या बताउं कैसी उल्झने हैं
दिन रात कैसे मरता हू
उडने की हैं आरजू पर
पैरो में लगी हैं बेडिया
जैसे किसी ने मेरी नसो में डाल दिया हो
खौलता पानी.

सुझता नही कि क्या करू
पड गये हैं छाले उस जगह
जिस जगह रखे थे ख्वाब चुनकर
जिस वजह से मैं जी रहा था
युं लग रहा हैं गोया बेकार हो रही हैं
जवानी.

हो गया हू तन्हा आज कितना
तनहाई भी हैं कुछ खफा सी
रोज रूबरू होती हैं मुझसे
एक नये रूप में ये जिंदगी
खतम होते नही पन्ने इसके
कितनी लंबी हो गयी कहानी.

Monday, January 4, 2010

मुझे क्या

कहीं कोई गुर्सनागी से मर रहा है
कोई तिश्नगी से तड़प रहा है
कहीं किसी की इस्मत लुट गयी है
किसी का जहां तबाह हुआ है
कहीं मातम का आलम है
कोई हैरान परेशां है
कोई दर्द से बिलबिला रहा है
कोई बईफात ग़मों से लाईल्म हो चुका है.

गाँव के गाँव डूब गए हैं कहीं
कहीं फसलों की तरह नस्लें
मुरझा गयीं हैं
गली गली से
कत्ले आम के ख़बरों की
बू आ रही है
हर तरफ लूटमार मची है
ज़िन्दगी महफूज़ किधर है?

मुझे सुबह सुबह काम पर जाना है
कंप्यूटर के स्क्रीन पर
आँखें फोड़कर घर लौटना है
रास्ते से सब्जियां खरीदनी हैं
टेलीफोन और बिजली के बिल जमा करने हैं
देर से आने पर बीवी के ताने सुनने हैं

जब खुदा को यह सब
दिखाई नहीं देता
सुनाई नहीं देता
तो मुझे क्या?
आज पंद्रह मिनट देर से पहुंचा था
ज़रा अलार्म जल्दी लगाना.

Sunday, January 3, 2010

तेरे बगैर

गिर्दबाद१ से उठते हैं
दिल में रह रह के
गाह-ब-गाह२,
बस इस ख्याल से ही कि
तुम किसी और की हो जाओगी.

एक दस्तगीर की तरह
खड़ी थी तुम मेरे
दुःख में दर्द में
दम ब दम३
कैसे सह पाउँगा
तुम्हारी जुदाई.

यह वक़्त यह दहर४
रुकता नहीं
कभी किसी के लिए
भला रुकी हैं आबोरावां५?

गुजरान६ तो हो ही जाएगी
मगर
तेरे बगैर
नातमाम७ रह जाएगी ज़िन्दगी.

१ बवंडर, २ कभी कभी, ३ हर पल, ४ जमाना, ५ बहता पानी, ६ गुजर, ७ अधूरी

खुदा मेरा

मेरी तरह मेरा खुदा भी
बड़ा सनकी किस्म का है
मेरी बात कभी सुनता ही नहीं
कितनी बार कहा,
दरख्वास्त की
गुजारिश की कि कुछ करिश्मा कर
जेब नोटों से भर दे.

बहुत सारे अरमानों के बीज
जो तुने बोये थे
अब दश्त१ बन चुके हैं
मगर वह हमेशा
लैत-व- लअल२ कर जाता है
अब मुझे क्या मालूम
उसके लिए क्या लाबूद३ है
क्या नहीं.

कब तोड़ेगा सुकूत४ अपनी
कब सुनेगा मेरी सदायें?

१ जंगल, २ टाल मटोल, ३ जरूरी, ४ चुप्पी