Wednesday, January 25, 2012

उदास शाम

तुम चले गए हो जबसे
लगता है सब बुझा बुझा सा है.
कुछ नज़र आता ही नहीं
गोया हरसूं धुंआ धुंआ सा है.
वक़्त गुजरा नहीं कई जमाने से
क्यूँ लगे वक़्त रुका रुका सा है.
भर गया जख्म जो भी तुमने दिया था
उठता क्यूँ दर्द फिर दबा दबा सा है.
अब तो तुमसे गिला भी करता नहीं
क्यूँ शर्म से तेरा सर झुका झुका सा है.
यूँ लगा था जैसे तुम्हें भुला दूंगा
जुस्तुजू फिर कोई जगा जगा सा है.

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