जिससे बातें की तन्हाईयों में अक्सर
और रोया जिसके सीने से लगकर
जिसकी आँखों में देखी जन्नत के नज़ारे
कट गया बुरा वक़्त भी जिसके सहारे
जिसके लरजते होठों को छुआ है कई बार
जिसको महसूस कर छाया मस्ती का खुमार
जिसकी आवाज़ आज भी खनखनाती है कानों में
मिला तो नहीं पर रहती है आस पास इन्ही मकानों में.
किस हमसफ़र की तलाश में
सदियाँ गुजर गयी
जो ना ख्वाब्गाहों में मिला
ना ख्यालों में.
मंत्रमुग्धा / कविता भट्ट
1 year ago
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