Tuesday, August 4, 2009

वक़्त जाया करने के लिए

हमने हवाओं को चूमने का इरादा जताया था
उसका गुरूर तो देखो उसने सैंडल दिखा दिया.

गरम है सूरज
तो उसकी क्या खता
कोई यह क्यूँ नहीं सोचता
उसके पास भी दिल होगा.
किसने की थी बेवफाई
जो वह आज भी जल
रहा है.

और कितनी कुर्बानी लोगे
सुना यह खबर?
आज फिर किसी दीवाने का
ज़नाज़ा उठ गया.

घंटो खड़े रहे कि शाम हो गयी
अब खिड़की खुलेगी, पर्दा सरकेगा
खिड़की खुली, पर्दा भी सरका मगर
कमबख्त !! बिज़ली ही गुल हो गयी.

मुबारक हो तुम्हे तुम्हारी जवानी
इसका अचार डालना.
अरे जब हम ही नहीं रहेंगे
तो तुम्हे गुले- गुलफाम कहेगा कौन?

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