Friday, August 21, 2009

मेरी प्रिय नज़्म

ना किसी की आँख का नूर हूँ
ना किसी के दिल का करार हूँ
जो किसी के काम ना आ सके
मैं वो एक मुश्त- ए- गोबार हूँ.

ना तो मैं किसी का हबीब हूँ
ना तो मैं किसी का रकीब हूँ
जो बिगड़ चला गया वो नसीब हूँ
जो उजाड़ गया वो दयार हूँ

मैं कहाँ रहूँ मैं कहाँ बसूँ
ना यह मुझसे खुश ना वो मुझसे खुश
मैं ज़मीन के पीठ का बोझ हूँ
मैं फलक के दिल का गोबार हूँ

मेरा रंग रूप बिगड़ गया
मेरा यार मुझसे बिछड़ गया
जो चमन फिजा में उजाड़ गया
मैं उसी की फासले बहार हूँ

- शाह बहादुर ज़फर शाह

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