मैंने उनसे
कभी बात नहीं की थी
उन्होंने भी कभी
कोशिश नहीं की
हमारी नज़रें रोज मिल जातीं थीं
सुबह शुबह, दोपहर या शाम में
जब भी
खिड़की से बहार झांकता
वो मुझे देखते
मैं उन्हें देखता
और एक तरह से
अनजान बनकर भी
हम एक दुसरे को
जानने लगे थे
सुबह सुबह
अखबार लेकर बैठे रहते
घंटों ख़बरों के बीच
उलझे रहते
जब भी खिड़की से झांकता
सबसे पहले
उनका ही चेहरा दिखता
लेकिन वो चेहरा
अब कभी नहीं दिखेगा
क्यूंकि सुना
आज अचानक
उनके दिल की धड़कन रुक गयी
और ख़त्म हो गया
एक अस्तित्व
एक वजूद
एक ही पल में.
जिस बिस्तर पर वो सोते थे
जूते जो पहनते थे
जो घडी अक्सर
उनकी कलाई में लटकी रहती
जिसे वो अपना समझते थे
दरवाजे के बाहर
लावारिस पड़ी है
शायद, किसी को दान दे दिया जायेगा.
हम अजनबी थे
नाम तक नहीं जानते थे
कभी बात तक नहीं की थी
पर आज
उनकी कमी सी खलती है
बात करने को जी चाहता है. . .
मंत्रमुग्धा / कविता भट्ट
2 years ago
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