Monday, February 6, 2012

उन दोस्तों के नाम

ये जो दर्द है, इस दर्द की, दवा नहीं
वो जो लग जाए मुझे, ऐसी कोई, दुआ नहीं.

मेरी हर किसी से है दोस्ती
कितने तो मेरे यार हैं
जिन पर बड़ा गुरूर है
अजी जान भी निसार है.
मगर ये अफ़सोस कि, उन्हें भी यूँ, लगा नहीं.

ये तो हुस्न वाले हैं अरे
इन्हें क्या कोई जिये मरे
बहुत बदगुमान है ये कौम
जो जमीं पे है कब ठहरे.
इतनी सी बात समझ लें ये, ऐसा कभी, हुआ नहीं.

कुछ लोग मुझ जैसे भी हैं
जिन्हें खुद की कुछ खबर नहीं
जिन्हें ग़म ही रास आ गया
ख़ुशी की कुछ कदर नहीं.
किसी रोते को हँसा दिया, कुछ और तो, किया नहीं.

कुछ ज़िन्दगी के नाम

ज़िन्दगी तुझपे कई एहसान हैं मेरे
देख मैं जिंदा हूँ सौ ग़म खाके भी.
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जिस तरह मौत अमादा थी गले लगाने को
काश कि तुझे मेरी जुस्तुजू भी होती.
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या खुदा तूने दिया क्या इक ग़म के सिवा
चल तुझपे इक ज़िन्दगी उधार रही.

Sunday, February 5, 2012

आदतें

अपनी आदत से मजबूर हैं
दुनिया में सभी
किसी को दिल्लगी किसी को दिल
तुडवाने की बीमारी.

कोई ख़्वाब दिखाता कोई देखता है
कोई राज बताता है कोई दबाता है
कोई घर बनाता कोई रहता है
कोई सुनता है कोई गुनगुनाता है

कोई लूटता है कोई लुट जाता है
कोई छोड़ दे कोई अपनाता है
कोई रोये ही कोई मुस्कुराता है
कोई चीखे कोई फुसफुसाता है

कोई बेशर्म है कोई शरमाता है
करे सजदा कोई गलियाता है
कोई यादों में जिये कोई भूल जाता है

अपनी आदत से मजबूर हैं
दुनिया में सभी
किसी को मौत मिल जाए किसी को
ना आये जीना ही.

जब वी मेट

बात मुद्दत के मुस्कुराए थे वो
जैसे बिछड़ा हुआ मिला हो कोई.

लफ्ज़ दो प्यार से कहा भी नहीं
लब पे जैसे रखा गिला हो कोई.
होठों पे कुछ तो हरकत सी हुई
ज्यूँ गुलाब इक हिला हो कोई.

खुश तो वो यूँ हुए कि पूछो मत
झूमकर ज्यूँ घटा बरसा हो कोई.
हमने आँखों से इतनी पी ली
गोया सदियों से प्यासा हो कोई.

कर गए दूर से (ही) रुखसत वो हमे
न मिलेंगें फिर करके ये वादा.
छूने की रह गयी हसरत दिल में
क्या था जो माँगा (था) इत्ता भी ज्यादा.

Thursday, February 2, 2012

मेरे आगे

इक अलग अंदाज़ में मिलता है जमाना
होता है रोज ये तमाशा मेरे आगे.
अब यकीं किस बात पे करें बोलो
खुलता है झूठ का पुलिंदा मेरे आगे.
वो जो बड़े मासूम बने फिरते हैं
जगता है उनमें दरिंदा मेरे आगे.
मेरे अरमानों के परवाज़ भी हैं
गिरता है फलक से परिंदा मेरे आगे.
ख्वाबों पे ज़िन्दगी बसर नहीं होती
मरता है मजबूर (इक) बंदा मेरे आगे.
बोलियाँ चाहे जिसकी भी लगा लो
होता है गैरत का धंधा मेरे आगे.
शौक़ से इश्क फरमाओ लेकिन
उठता है इश्क का जनाजा मेरे आगे.
क्या गिला जाके दैरो- हरम में करुँ
है खुदा पहले ही शर्मिंदा मेरे आगे.