Wednesday, January 25, 2012

तजुर्बा- २

सुना है दर्द में दर्द का एहसास नहीं होता
बुरा हो वक़्त तो कोई हमदर्द पास नहीं होता.
यूँ तो किसी भी बात पे रोना आ सकता है मगर
अश्क निकलते नहीं ग़म जब बेइन्तेहाँ होता है.
तुम्हें मिल जायेगें हर मोड़ पे नए नए दोस्त
उसकी कमी तो रह जायेगी वो जो जुदा होता है.
क्यूँ गिला शिकवा किया नहीं कभी हमसे
चुप रहना, कुछ न कहना ज्यादा बुरा होता है.
उसने पूछा कि हम तनहा क्यूँ हैं अब तक
बेशकीमती चीज़ों का सौदा नहीं होता है.

उदास शाम

तुम चले गए हो जबसे
लगता है सब बुझा बुझा सा है.
कुछ नज़र आता ही नहीं
गोया हरसूं धुंआ धुंआ सा है.
वक़्त गुजरा नहीं कई जमाने से
क्यूँ लगे वक़्त रुका रुका सा है.
भर गया जख्म जो भी तुमने दिया था
उठता क्यूँ दर्द फिर दबा दबा सा है.
अब तो तुमसे गिला भी करता नहीं
क्यूँ शर्म से तेरा सर झुका झुका सा है.
यूँ लगा था जैसे तुम्हें भुला दूंगा
जुस्तुजू फिर कोई जगा जगा सा है.

चले आओ पिया

याद बड़ी जोर की आ रही है पिया
दिल दुखाने ही तुम चले आओ.
वो दिया जख्म भी भर चला है
कोई नया ग़म देने चले आओ.
लग गयी है सिसकने की ये जो आदत
तुम रुलाने ही सही चले आओ.
तुम्हें नफ़रत की नज़र से भी देखें
तुम सताने ही लेकिन चले आओ.
क़दमों में फूल बिछाने का था वादा
कांटें ही राह में बोने चले आओ.
हो जीने का कुछ तो सबब अपना भी
इस हालत पे तरस खाने चले आओ.
हम ना बोलेंगें एक लफ्ज़ भी कभी
कि सीलेंगें ये लब चले आओ.
यूँ तो तुमसे बड़ी शिकायत है हमे
ना करेंगें गिला तुमसे चले आओ.

तेरे बगैर

तुम ना आओगे तो शाम गुजरेगी कैसे
यूँ तनहाइयों में महफ़िल जमेगी कैसे.
तुम जो होते हो तो करार मिलता है मुझे
दिल की बेताबियाँ वरना थमेगीं कैसे.
तुम पे आके ही ख़त्म होती है हर जुस्तुजू
आरजू दिल की तुम बिन जगेगी कैसे.
तेरी आँखों में समाई है मेरी दुनिया
ये निगाहें किसी और को देखेगीं कैसे.
धड़कने गिनगिन के रात बिताई मैंने
इतने मसरूफ हो समझोगे कैसे.
क़त्ल कर जाता है रात का सन्नाटा
चैन से सोने वाले जानोगे कैसे.

Wednesday, January 4, 2012

तलाश

जिससे बातें की तन्हाईयों में अक्सर
और रोया जिसके सीने से लगकर
जिसकी आँखों में देखी जन्नत के नज़ारे
कट गया बुरा वक़्त भी जिसके सहारे
जिसके लरजते होठों को छुआ है कई बार
जिसको महसूस कर छाया मस्ती का खुमार
जिसकी आवाज़ आज भी खनखनाती है कानों में
मिला तो नहीं पर रहती है आस पास इन्ही मकानों में.

किस हमसफ़र की तलाश में
सदियाँ गुजर गयी
जो ना ख्वाब्गाहों में मिला
ना ख्यालों में.