Saturday, July 3, 2010

माँ- बाप

पिछले जन्मों का फल था
जो ऐसे घर में पैदा हुआ
दोस्तों, मेरे माँ बाप
मुझसे बेइन्तेहाँ प्यार करते हैं
और मेरे लिए
कुछ भी कर देना
उनके लिए बहुत ही सहज है
पिताजी कहते हैं
कि मैं अपने बेटे के लिए
खुद को नीलाम भी करना पड़े
तो करूंगा
भीख भी मांगना पड़े
तो मागूँगा

मिठाईयां, नमकीन, चाकलेट
कुछ भी लाते हैं
तो चाहते हैं कि सारा का सारा
बेटा खा जाए
जैसे मेरे खाने से
उनका पेट भी भर जाएगा
क्या लोजिक है
तो ऐसे हैं मेरे माता पिता
तबियत खराब हो जाए
तो रात भर ऐसे
परेशान हो जाते हैं कि पूछो मत
माँ को आंसूओं की तो जैसे
कोई कदर ही नहीं
जब तब बहा देती है
कितना प्यार करते हैं वे मुझसे
कह पाना मुश्किल है.

और मैं कैसा बेटा हूँ
बारहवीं पास करने के बाद
घर त्याग दिया
अब घर मेहमान बनकर जाता हूँ
अच्छी नौकरी कर सकता था
माता पिता की मदद कर सकता था
लेकिन तभी याद आया
कि मुझे तो कुछ और ही करना है
कि मेरा एक सपना भी है
कि मुझे नौ से पांच की
नौकरी तो नहीं करनी है
इसलिए
मुंबई चला आया
उन्हीं सपनों की खातिर.

अब यहाँ अकेले रहता हूँ
इधर उधर खा लेता हूँ
बीमार होता हूँ
तो कोई पूछने नहीं आता
अब आज ही कर्फियू लगा था
कुछ खाने निकला था कि
पुलिसवाले ने ठोंक दिया
काफी जख्म हो गया है
दर्द बढ़ता जा रहा है
चला नहीं जा रहा है
घर में कुछ खाने को नहीं है
कोई एक रोटी देने वाला नहीं
घर में पंखा भी नहीं
गर्मी से जख्म और बढ़ जाता है
इधर
रात में चूहे परेशान करते हैं
सोने नहीं देते
ठीक सिरहाने
बिलों में खुदाई अभियान चलाते हैं
चूकिं चटाई पर सोता हूँ
चींटीयाँ काट काट कर
बुरा हाल कर देतीं हैं
फिर भी यारों
नींद आ ही जाती है
थोड़ी मशक्कत के बाद.

चाहता तो
एक आराम की ज़िन्दगी जी सकता था
क्योंकि मैं आम आदमी बनके
नहीं जीना चाहता था
इसलिए
सब कुछ सहा
उन चंद सपनों के लिए
क्या कुछ नहीं किया
सिर्फ इसलिए कि
उन सपनों को देख देख कर ही
मैं बड़ा हुआ
जिनके बिना मैं
अधूरा सा लगता हूँ
जिनके बिना ज़िन्दगी बेमानी सी लगती है
मालूम नहीं
क्या होगा उन सपनों का
हर पल इनके चलते
दुःख और दर्द सहते सहते
उब सा गया हूँ
सोचकर ही परेशान सा हो जाता हूँ
अगर ये सपने
सच नहीं हुए तो?
डर लगता है कहीं
मैं आम आदमी की तरह ही
ना मर जाऊं.

मेरे जैसे स्वार्थी बेटे से
इन अभागे माँ बाप को
क्या सुख?
उनकी खोज खबर लेने वाला
कोई नहीं
अब उनकी तकलीफ
फोन कर देने से तो
दूर नहीं हो सकती
इस उम्र में जबकि
उन्हें मेरी ज्यादे जरूरत है
बच्चों की फ़िक्र में ही
रातें काटने की
उन्हें आदत पड़ गयी है.


उन्हें अपनी फ़िक्र
जाने कब होगी?

2 comments:

  1. खूबसूरत प्रयास

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  2. duniya me yahi ek rishta jo bhagwan ne sabko diya hai -maa baap. ye hamin hain jo unke feelings nhi samjhte aur unpar haq jatate hai aur jab apne farz ki bat aati hai to bhul jate hain unhe.ye unka badappan hai ki wo hamari sari galatiyon ko bhula dete hain chhupate hain sabse ..muskarate rahte hain aur ham unki ek galti sabko ginate rahte hain .....kyon paida kiya ...bhugte!!!!!!!!!!!

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