Friday, July 9, 2010

नासिख१

मुझ जैसे मुहर्रिर१ की
ज़िन्दगी भी कोई ज़िन्दगी है?
क्या हासिल हुआ कलम घिस घिस कर?
खिस्सत२ की ज़िन्दगी
जिया मैं
खैरात पे बसर किया
फांके मारे हैं दिनों तक
ग़ालिब मुझे तो
दो घूँट भी नसीब नहीं हुई.

तकरीक३ ना हुआ कोई
ना किसी का खूँ ही खौला
ना पशेमानी४ आई
जो भी लिखा, बेकार हुआ.

बुत सा पडा हूँ
इस नाज़ेब५ और
नाचाक६ सी दुनिया में
नाचीज़ की तरह
कोई दर्यां७ हो तो
बताओ भाई
ढूंढ दो कोई हमदर्द मिरा
जो तहमीद८ करे
मेरी खातिर
जो तस्हीह९ कर दे
मेरी तलफ१० होती
यावा सी ज़िन्दगी.

एक मौक़ा और मिले तो
तरमीम११ भी कर लूं
जी लूं उनकी तरह भी;
इस तर्रार१२, फ़रऊन१३ दुनिया,
जो फ़वायद१४ की बुनियाद पर टिकी है
के किसी काम नहीं रहा.

बशरियत१५ नहीं रही
दोज़ख१६ क्या जन्नत क्या.

मायने-
१ लेखक, २ कंजूसी, ३ उत्तेजित, ४ शर्म, ५ बेमेल, ६ बेमजा, ७ इलाज़, ८ ईश्वर से प्रार्थना, ९ दुरुस्त, १० बर्बाद, ११ सुधार,१२ तेज, १३ जालिम, १४ फायदों, १५ इंसानियत, १६ नरक

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