Thursday, October 15, 2009

हमसफ़र

एक जमाना वो भी था
मुझको देखे बिना आराम ना था

मुझसे बातें करते नहीं थकते थे
दिल को बहलाना आसान ना था

उन्हें हर बात से फ़िक्र होती थी
अपनी हालत का कुछ ख्याल ना था

हरेक बात पे कसम खाते थे
खुद पे इतना कभी गुमान ना था

रास्ते में घंटों राह ताकना
गोया उन्हें और कोई काम ना था

आज जब मुंह फेर कर वो चले गए
मैंने जाना फिजा का रुख, बदल गया

वो कोई ख़्वाब समझ के भुला बैठे
शायद नया हमसफ़र मिल गया.

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