एक जमाना वो भी था
मुझको देखे बिना आराम ना था
मुझसे बातें करते नहीं थकते थे
दिल को बहलाना आसान ना था
उन्हें हर बात से फ़िक्र होती थी
अपनी हालत का कुछ ख्याल ना था
हरेक बात पे कसम खाते थे
खुद पे इतना कभी गुमान ना था
रास्ते में घंटों राह ताकना
गोया उन्हें और कोई काम ना था
आज जब मुंह फेर कर वो चले गए
मैंने जाना फिजा का रुख, बदल गया
वो कोई ख़्वाब समझ के भुला बैठे
शायद नया हमसफ़र मिल गया.
मंत्रमुग्धा / कविता भट्ट
1 year ago
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